ज्ञानप्राप्तिकी प्रचलित प्रक्रिया
शास्त्रोंमें ज्ञानप्राप्तिके आठ अन्तरंग साधन कहे गये हैं—(१) विवेक, (२) वैराग्य, (३) शमादि षट्सम्पत्ति (शम, दम, श्रद्धा, उपरति, तितिक्षा और समाधान), (४) मुमुक्षुता, (५) श्रवण, (६) मनन, (७) निदिध्यासन और (८) तत्त्वपदार्थसंशोधन। इनमें पहला साधन विवेक है। सत् और असत्को अलग-अलग जानना 'विवेक’ कहलाता है। सत्-असत्को अलग-अलग जानकर असत्का त्याग करना अथवा संसारसे विमुख होना 'वैराग्य’ है। इसके बाद शमादि षट््सम्पत्ति आती है। मनको इन्द्रियोंके विषयोंसे हटाना 'शम’ है। इन्द्रियोंको विषयोंसे हटाना 'दम’ है। ईश्वर, शास्त्र आदिपर पूज्यभावपूर्वक प्रत्यक्षसे भी अधिक विश्वास करना 'श्रद्धा’ है। वृत्तियोंका संसारकी ओरसे हट जाना 'उपरति’ है। सरदी-गरमी आदि द्वन्द्वोंको सहना, उनकी उपेक्षा करना 'तितिक्षा’ है। अन्त:करणमें शंकाओंका न रहना 'समाधान’ है। इसके बाद चौथा साधन है—मुमुक्षुता। संसारसे छूटनेकी इच्छा 'मुमुक्षुता’ है।
मुमुक्षुता जाग्रत् होनेके बाद साधक पदार्थों और कर्मोंका स्वरूपसे त्याग करके श्रोत्रिय और ब्रह्मनिष्ठ गुरुके पास जाता है। गुरुके पास निवास करते हुए शास्त्रोंको सुनकर तात्पर्यका निर्णय करना तथा उसे धारण करना 'श्रवण’ है। श्रवणसे प्रमाणगत संशय दूर होता है। परमात्मतत्त्वका युक्ति- प्रयुक्तियोंसे चिन्तन करना 'मनन’ है। मननसे प्रमेयगत संशय दूर होता है। संसारकी सत्ताको मानना और परमात्म- तत्त्वकी सत्ताको न मानना 'विपरीत भावना’ कहलाती है। विपरीत भावनाको हटाना 'निदिध्यासन’ है। प्राकृत पदार्थमात्रसे सम्बन्ध-विच्छेद हो जाय और केवल एक चिन्मयतत्त्व शेष रह जाय—यह 'तत्त्वपदार्थसंशोधन’ है। इसे ही तत्त्व-साक्षात्कार कहते हैं।
Jai shree krishna
ReplyDeleteBolo bansi bale ki jai
ReplyDeletejay ho
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