विदिशा. अपने भक्त मानकचंद तरफदार को दिया वचन निभाने जगदीश स्वामी अपने भाई बलभद्र और बहन देवी सुभद्रा संग हर साल आषाढ़ सुदी दूज के दिन भक्तों को दर्शन देने जगन्नाथ पुरी से मानोरा आते हैं। ऐसी मान्यता है कि जब वे पुरी से मानोरा की ओर प्रस्थान करते हैं तो पुरी में रथ पल भर को स्थिर हो जाता है और वहां के पंडा घोषणा करते हैं कि भगवान अपने भक्त के गांव मानोरा पधार गए हैं। इसी आस्था के वशीभूत होकर लाखों दर्शनार्थी रथ में आरूढ़ भगवान जगदीश स्वामी के दर्शन करने उमड़ पड़ते हैं। आस्था ऐसी की दूर-दूर से अपनी मन्नतों की गठरी बांधे लोग दंडवत करते हुए चले आते हैं। जिले के छोटे से गांव मानोरा में 4 जुलाई को भगवान जगदीश स्वामी अपने भक्तों को दर्शन देने के लिए गर्भग्रह से निकलकर रथ में सवार होकर गांव में निकलेंगे। दूर-दूर के लाखों लोग उनके दर्शन करने मानोरा पहुंचने का मन बना चुके हैं। गांव का हर घर भगवान का स्वागत करने और दूर-दूर से आने वाले दर्शनार्थियों की मेजबानी करने आतुर है। मान्यता भी है कि जो लोग उड़ीसा के जगन्नाथ पुरी न जा पाते हों, वे मानोरा में आकर भगवान के दर्शन कर लें उन्हें वही पुण्य मिलेगा। दूर-दूर से दंडवत करते और अपनी मनोकामना लिए जगदीश के दरबार में दर्शनार्थियों के पहुंचने का सिलसिला शुरू हो गया है। हाथों से खींचा जाता है भगवान का रथ
विदिशा जिले के मनोरा में तीन सौ साल पुराना भगवान जगदीश का मंदिर है। इस प्राचीन मंदिर में भगवान जगन्नाथए बलभद्र और देवी सुभद्रा के श्रीविग्रह विराजमान हैं। यहां के हर घर में सभी जाति-धर्म के लोग एकजुट होकर भगवान का रथ खींचते हैं और मिलजुलकर इस उत्सव को मनाते हैं। सुबह 6 बजे भगवान रथ में विराजित होते हैं और करीब 7 बजे रथ मंदिर से रवाना होता है।
जगन्नाथ पुरी में होती है घोषणा
मंदिर के मुख्य पुजारी भगवती दास ने पत्रिका को बताया कि रथयात्रा से एक दिन पहले शाम को जब आरती के बाद भोग लगाकर भगवान को शयन कराते हैं तब मंदिर के पट बंद कर दिए जाते हैं। खास बात यह है कि दूसरे दिन सुबह जब मंदिर पहुंचते हैं तो पट अपने आप थोड़े से खुले मिलते हैं। जब रथ पर भगवान को सवार कराया जाता है तो अपने आप उसमें कंपन्न होता है अथवा वह खुद ही लुढ़कने लगता है। यही प्रतीक है कि भगवान मानोरा पधार गए। मुख्य पुजारी के मुताबिक उड़ीसा की पुरी में भी पंडा रथयात्रा के दौरान जब वहां भगवान का रथ ठिठककर रुकता है तो घोषणा करते हैं कि भगवान मानोरा पधार गए हैं।
जगन्नाथ का भात जगत पसारे हाथ
जगन्नाथ का भात, जगत पसारे हाथ... इसी मान्यता के अनुसार भगवान जगदीश स्वामी को मीठे पीले भात का भोग विशेष तौर पर चढ़ाया जाता है। भात का यह भोग अटका कहलाता है, जिसे पूरे विधि-विधान और शुद्धता के साथ मिट्टी की सात हंडियों मेंं मंदिर के मुख्य पुजारी द्वारा ही तैयार किया जाता है। भगवान को अर्पित करने के बाद यही भात भक्तों में प्रसादी के तौर पर वितरित किया जाता है।
जय जगदीश हरे की टेर
इस मंदिर में हजारों श्रद्धालु मीलों दूर से दण्डवत करते हुए मनोरा पहुंचते हैं। रास्ते चाहे पथरीले हो, कटीले हो या कीचड़ से भरे हो, भक्तों की आस्था पीछे नहीं हटती है। दो-दो दिन पहले से ही लोग दंडवत करते हुए मानोरा पहुंचने लगते हैं। रास्ते भर जय जगदीश हरे की टेर लगाते चलते हैं।
जगन्नाथ का भात, जगत पसारे हाथ... इसी मान्यता के अनुसार भगवान जगदीश स्वामी को मीठे पीले भात का भोग विशेष तौर पर चढ़ाया जाता है। भात का यह भोग अटका कहलाता है, जिसे पूरे विधि-विधान और शुद्धता के साथ मिट्टी की सात हंडियों मेंं मंदिर के मुख्य पुजारी द्वारा ही तैयार किया जाता है। भगवान को अर्पित करने के बाद यही भात भक्तों में प्रसादी के तौर पर वितरित किया जाता है।
जय जगदीश हरे की टेर
इस मंदिर में हजारों श्रद्धालु मीलों दूर से दण्डवत करते हुए मनोरा पहुंचते हैं। रास्ते चाहे पथरीले हो, कटीले हो या कीचड़ से भरे हो, भक्तों की आस्था पीछे नहीं हटती है। दो-दो दिन पहले से ही लोग दंडवत करते हुए मानोरा पहुंचने लगते हैं। रास्ते भर जय जगदीश हरे की टेर लगाते चलते हैं।
प्रशासन ने किए पुख्ता इंतजाम
लाखों लोगों की मौजूदगी को देखते हुए मानोरा मेले के लिए प्रशासन ने भी पुख्ता इंतजाम किए हैं। जिले भर से पुलिस बल मानोरा पहुंचने लगा है। सीसीटीवी कैमरे लगाए जा रहे हैं। रथयात्रा का मार्ग व्यवस्थित किया गया है। दर्शनार्थियों को पिण्ड भरने और दर्शन करने में असुविधा न हो इसका पूरा ध्यान रखा जा रहा है। मेला परिसर में पुलिस चौकी भी बनाई जा रही है। पानी, बिजली आदि के पूरे इंतजाम किए गए हैं।
हर घर मेजबानी के लिए तैयार
श्री जगदीश स्वामी मंदिर ट्रस्ट मानोरा के अध्यक्ष भगवान सिंह रघुवंशी कहते हैं कि मानोरा सात-आठ सौ घरों की बस्ती है, लेकिन रथयात्रा के दिन यहां दर्शनार्थियों का ऐसा सैलाब उमड़ता है कि करीब 6-7 लाख लोग जगदीश स्वामी के दर्शन के लिए पहुंचते हैं। गांव में हर समाज के लोग न सिर्फ भगवान का भक्तिभाव से स्वागत करते हैं बल्कि दूरदराज से आने वाले मेहमानों का भी दिल से स्वागत करते हैं।
लाखों लोगों की मौजूदगी को देखते हुए मानोरा मेले के लिए प्रशासन ने भी पुख्ता इंतजाम किए हैं। जिले भर से पुलिस बल मानोरा पहुंचने लगा है। सीसीटीवी कैमरे लगाए जा रहे हैं। रथयात्रा का मार्ग व्यवस्थित किया गया है। दर्शनार्थियों को पिण्ड भरने और दर्शन करने में असुविधा न हो इसका पूरा ध्यान रखा जा रहा है। मेला परिसर में पुलिस चौकी भी बनाई जा रही है। पानी, बिजली आदि के पूरे इंतजाम किए गए हैं।
हर घर मेजबानी के लिए तैयार
श्री जगदीश स्वामी मंदिर ट्रस्ट मानोरा के अध्यक्ष भगवान सिंह रघुवंशी कहते हैं कि मानोरा सात-आठ सौ घरों की बस्ती है, लेकिन रथयात्रा के दिन यहां दर्शनार्थियों का ऐसा सैलाब उमड़ता है कि करीब 6-7 लाख लोग जगदीश स्वामी के दर्शन के लिए पहुंचते हैं। गांव में हर समाज के लोग न सिर्फ भगवान का भक्तिभाव से स्वागत करते हैं बल्कि दूरदराज से आने वाले मेहमानों का भी दिल से स्वागत करते हैं।
मानकचंद और पद्मावती की आस्था का प्रतीक
मं दिर ट्रस्ट के ट्रस्टी रामनाथ सिंह के मुताबिक यह मंदिर भगवान के भक्त और मनोरा के तरफदार मानिकचंद और देवी पद्मावती की आस्था का प्रतीक है। तरफदार दंपती भगवान के दर्शन की आकांक्षा में दंडवत करते हुए जगन्नाथपुरी चल पड़े थे। दुर्गम रास्तों के कारण दोनों के शरीर लहुलुहान हो गए, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। इस पर भगवान स्वयं प्रकट हुए और उनको मनोरा में ही हर वर्ष दर्शन देने आने का वचन दे दिया। अपने भक्त को दिए इसी वचन को निभाने हर साल आषाढ़ सुदी दूज को रथयात्रा के दिन भगवान जगदीश मनोरा पधारते हैं और रथ में सवार होकर भक्तों को दर्शन देने निकलते हैं। मंदिर के ट्रस्टी और पूर्व सरपंच रामनाथ सिंह बताते हैं कि जब मंदिर बना तो जगन्नाथ पुरी उड़ीसा से जगदीश स्वामी, बलदाऊ जी और देवी सुभद्र की ये प्रतिमाएं कांवड़ों में रखकर मानोरा लाईं गईं थी और वहीं के पंडों ने प्रतिमाओं की स्थापना कराई थी।
मं दिर ट्रस्ट के ट्रस्टी रामनाथ सिंह के मुताबिक यह मंदिर भगवान के भक्त और मनोरा के तरफदार मानिकचंद और देवी पद्मावती की आस्था का प्रतीक है। तरफदार दंपती भगवान के दर्शन की आकांक्षा में दंडवत करते हुए जगन्नाथपुरी चल पड़े थे। दुर्गम रास्तों के कारण दोनों के शरीर लहुलुहान हो गए, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। इस पर भगवान स्वयं प्रकट हुए और उनको मनोरा में ही हर वर्ष दर्शन देने आने का वचन दे दिया। अपने भक्त को दिए इसी वचन को निभाने हर साल आषाढ़ सुदी दूज को रथयात्रा के दिन भगवान जगदीश मनोरा पधारते हैं और रथ में सवार होकर भक्तों को दर्शन देने निकलते हैं। मंदिर के ट्रस्टी और पूर्व सरपंच रामनाथ सिंह बताते हैं कि जब मंदिर बना तो जगन्नाथ पुरी उड़ीसा से जगदीश स्वामी, बलदाऊ जी और देवी सुभद्र की ये प्रतिमाएं कांवड़ों में रखकर मानोरा लाईं गईं थी और वहीं के पंडों ने प्रतिमाओं की स्थापना कराई थी।
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