Wednesday, April 6, 2022

नवरात्र के छठे दिन मां दुर्गा के कात्यायनी स्वरूप की पूजा


नवरात्र के छठे दिन मां दुर्गा के कात्यायनी स्वरूप की पूजा की जाती है
। 

माता का यह स्वरूप बहुत ही करुणामयी है। माता ने यह स्वरूप अपने भक्त की तपस्या को सफल बनाने के लिए धारण किया था।महर्षि कात्यायन की तपस्या से प्रसन्न होकर देवी ने उनकी पुत्री के रूप में जन्म लेने का वरदान दिया था। अपने दिए वरदान के कारण देवी ने कात्यायन के यहां जन्म लिया और देवी कात्यायनी कहलायीं। मां कात्यायनी को महिषासुर मर्दनी भी कहा जाता है।पुराणों के अनुसार इनकी उपासना करनेवाले को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन चार पुरुषार्थों की प्राप्ति होती है।

श्रीमद देवीभागवत पुराण के अनुसार मां कात्यायनी का रंग स्वर्ण की भांति चमकीला है और इनकी चार भुजाएं हैं। दाईं ओर के ऊपर वाली भुजा अभय मुद्रा में है और नीचे वाला हाथ वर मुद्रा में। बाईं ओर के ऊपर वाले हाथ में खड्ग अर्थात् तलवार लिए हुए माता हैं और नीचेवाले हाथ में कमल का फूल है। इनका वाहन सिंह है। मां के रूप का वर्णन शास्त्रों में कुछ इस प्रकार मिलता है…

चंद्रहासोज्ज्वलकरा, शार्दूलवरवाहना। कात्यायनी शुभं दद्यात्, देवी दानवघातनी।।

इस श्लोक का अर्थ है, चंद्रहास की भांति देदीप्यमान, शार्दूल अर्थात् शेर पर सवार और दानवों का विनाश करनेवाली मां कात्यायनी हम सबके लिए शुभदायी हो।

श्रीकृष्ण की लीलाओं में भी मां कात्यायनी के रूप और पूजन का वर्णन मिलता है। ब्रज प्रदेश की गोपियों ने भगवान कृष्ण को पति के रूप में पाने के लिए यमुना के तट पर इन्हीं मां कात्यायनी की पूजा की थी। कहा जाता है कि जिन लोगों के विवाह में बाधा आ रही हो उन्हें देवी कात्यायनी की पूजा करनी चाहिए, इससे विवाह का योग प्रबल होता है।

🚩पूजा विधि और भोग

कात्यायनी की पूजा में शहद का विशेष महत्व बताया गया है इसलिए माता के इस स्वरूप को शहद का भोग अवश्य लगाना चाहिए। माता को शहद का भोग लगाते समय मिट्टी या चांदी के बर्तन का प्रयोग करना चाहिए। माता ने शहद युक्त पान खाकर महिषासुर का वध किया था जिसका उल्लेख दुर्गा सप्तशती में किया गया है।

ऋषि पुत्री होने के कारण मां दुर्गा के इस स्वरूप को अज्ञान का अंधकार मिटानेवाली देवी के रूप में भी पूजा जाता है। इसलिए उच्च शिक्षा का अध्ययन कर रहे छात्रों को मां कात्यायनी का पूजन अवश्य करना चाहिए।

माता कात्यायनी की पूजा शाम के समय करने का विशेष महत्व है। सूर्यास्त के समय देवी का पूजन करें। इनकी पूजा में पीले फूल और पीले वस्त्र अर्पित करने चाहिए। मां कात्यायनी का ध्यानमंत्र इस प्रकार है…

कंचनाभा वराभयं पद्मधरां मुकटोज्जवलां।

स्मेरमुखीं शिवपत्नी कात्यायनी नमोस्तुते॥ 🌹💐🙏🏻

No comments:

Post a Comment

हर साल वचन निभाने पुरी से मानोरा आते हैं भगवान जगदीश स्वामी

  विदिशा . अपने भक्त मानकचंद तरफदार को दिया वचन निभाने जगदीश स्वामी अपने भाई बलभद्र और बहन देवी सुभद्रा संग हर साल आषाढ़ सुदी दूज के दिन भक्...