क्यों रखी जाती है सिर पर शिखा या चोटी? जानिए इसके धार्मिक और वैज्ञानिक कारण-:
वैदिक संस्कृति में शिखा चोटी को कहा जाता है. चोटी रखने की प्रथा ऋषि मुनि के समय से चली आ रही है. जिसका पालन हिन्दू धर्म में अभी तक किया जा रहा है. चोटी रखने को लेकर विज्ञान ने भी अपना सकारात्मक पक्ष रखा है. आइए जानते हैं कि क्यों हिंदू धर्म में चोटी रखना अनिवार्य बताया गया है.
बच्चे का जब भी मुंडन किया जाता है या फिर किसी के घर में बुजुर्ग का निधन हो जाता है तो जो व्यक्ति अपना सिर मुंडवाता है, उस समय सिर पर थोड़े से बाल छोड़ दिए जाते हैं. जिसे चोटी या शिखा कहा जाता है. यह संस्कार यज्ञोपवित या जनेऊ के समय भी किया जाता है. सिर में जहां पर चोटी रखी जाती है वो जगह सहस्त्रार चक्र कहलाती है. ऐसी मान्यता है कि सहस्त्रार चक्र के नीचे ही मनुष्य की आत्मा का वास होता है.
विज्ञान के अनुसार
विज्ञान कहता है कि इस स्थान पर मस्तिष्क का केंद्र होता है. इसी स्थान से शरीर के अंगों, बुद्धि और मन को नियंत्रित किया जाता है.
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार
ज्योतिष शास्त्र में कहा गया है कि जिसकी कुंडली में राहु नीच का हो या फिर बुरा असर दे रहा हो तो उसे सलाह दी जाती है कि वह माथे पर तिलक लगाए और सिर पर चोटी रखे.
जानकार क्या कहते हैं
जानकारों के अनुसार जिस स्थान पर चोटी रखी जाती है वहां से मस्तिष्क संतुलन में रहता है. इससे सहस्त्रार चक्र जागृत रहता है. चोटी रखने से सहस्रार चक्र को जागृत करने और बुद्धि, मन और शरीर पर नियंत्रण रखने में सहायता मिलती है.
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार मान्यता है कि सहस्रार चक्र का आकार गाय के खुर के समान होता है. इसीलिए चोटी भी गाय के खुर के बराबर ही रखी जाती है.
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