Thursday, February 10, 2022

महाराज हरदौल ओरछा

बुंदेलखंड़ में पुरानी परंपराओं और लोक कथाओं का अब भी महत्व है, तमाम ऐसे रीति-रिवाज हैं जिन्हें सामाजिक और धार्मिक मान्यताओं से जोड़ कर बिना किसी झिझक निर्वहन भी किया जा रहा है। एक ऐसी परंपरा ओरछा के राजा ‘हरदौल' से जुड़ी है, जहां लोग शादी-विवाह हो या यज्ञ का भंड़ारा, उन्हें आमंत्रित करना नहीं भूलते। लोगों का मानना है कि राजा हरदौल को निमंत्रण देने से भंड़ारे में कोई कमी नहीं आती।

उत्तर प्रदेश के झांसी जनपद की सीमा से लगा मध्य प्रदेश के निवाड़ी  जिले का ओरछा कस्बा बुंदेलखंड़ में धार्मिक नगरी के रूप में गिना जाता है। कभी यह कस्बा महाराजा वीर सिंह की रियासत की राजधानी हुआ करता था, अब इसे तहसील का दर्जा मिला हुआ है। यहां के महाराजा वीर सिंह के सबसे छोटे बेटे ‘हरदौल' की वीरता और ब्रह्मचर्य के किस्से हर बुंदेली की जुबां पर हैं। महाराजा वीर सिंह के आठ पुत्र थे, जिनमें सबसे बड़े का नाम जुझार सिंह व सबसे छोटे हरदौल थे। जुझार को आगरा दरबार और हरदौल को ओरछा से राज्य संचालन का जिम्मा विरासत में मिला हुआ था। लोग जुझार सिंह को कान का कच्चा व हरदौल को ब्रह्मचारी एवं धार्मिक प्रवृत्ति का मानते हैं।

ओरछा में रह रहे एक 80 साल के बुजुर्ग बिंदा बताते हैं, "सन 1688 में एक खंगार सेनापति पहाड़ सिंह, प्रतीत राय व महिला हीरादेवी के भड़कावे में आकर राजा जुझार सिंह ने अपनी पत्नी चंपावती से छोटे भाई हरदौल को ‘विष' पिला कर पतिव्रता होने की परीक्षा ली, विषपान से महज 23 साल की उम्र में हरदौल की मौत हो गई। हरदौल के शव को बस्ती से अलग बीहड़ में दफनाया गया। जुझार की बहन कुंजावती, जो दतिया के राजा रणजीत सिंह को ब्याही थी, अपनी बेटी के ब्याह में भाई जुझार से जब भात मांगने गई तो उसने यह कह कर दुत्कार दिया क्‍योंकि वह हरदौल से ज्यादा स्नेह करती थी, श्मशान में जाकर उसी से भात मांगे। बस, क्या था कुंजावती रोती-बिलखती हरदौल की समाधि (चबूतरा) पहुंची और मर्यादा की दुहाई देकर भात मांगा तो समाधि से आवज आई कि वह (हरदौल) भात लेकर आएगा।

इस बुजुर्ग के अनुसार, "भांजी की शादी में राजा हरदौल की रूह भात लेकर गई, मगर भानेज दामाद (दूल्हे) की जिद पर मृतक राजा हरदौल को सदेह प्रकट होना पड़ा। बस, इस चमत्कार से उनकी समाधि में भव्य मन्दिर का निर्माण कराया गया और लोग राजा हरदौल को ‘देव' रूप में पूजने लगे।" ओरछा के ही एक अन्य बुजुर्ग सुखदेव बताते हैं, "कुंजावती की बेटी की शादी में हुए चमत्कार के बाद आस-पास के हर गांव में ग्रामीणों ने प्रतीक के तौर पर एक-एक ‘हरदौल चबूतरा' का निर्माण कराया, जो कई गांवों में अब भी मौजूद हैं।

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